Add To collaction

महापुरुष- महानायक प्रतियोगिता भाग 05 लेखनी कहानी -01-Oct-2022 शहीद चन्द्रशेखर आजाद

               महानायक चन्द्रशेखर आजाद
               *************************

       चन्द्रशेखर आजाद  भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के एक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी था।और माता का नाम जगदारानी था। वह अपने पिता की तरह ईमानदार व स्वाभिमानी थे।
    

   उन्हौने चौदह बर्ष की उम्र मे ही  बनारस जाकर संस्कृत विद्यालय में पढाई की थी। उन्होने वहाँ कानून भंग आन्दोलन में भी भाग लिया था।

    चन्द्रशेखर ने 1920-21 के गान्धीजी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। उनको वहाँ गिरफ्तार किया कर लिया गया था। जब वह जज के सामने प्रस्तुत हुए वहाँ जज ने उनका नाम पूछा तब उन्होंने अपना नाम आजाद बताया था।

     उनको पचास कौडे़ की सजा सुनाई गयी थी 
उन्होंने  हर कौडे़ की मार पर बन्दे मातरम  का नारा लगया था। इसके बाद उनका नाम आजाद पड़ गया था।

       जब क्रान्तिकारी आन्दोलन उग्र होगया तब आजाद  हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी में शामिल होगये ।आजाद ने राम प्रसाद बिस्मिल्ल के साथ काकोरी षड़यन्त्र मे  भी भाग लिया था। वह वहाँ से  पुलिस की आँखौ में धूल झौक कर फरार होगये थे।

    17 दिसम्बर 1928  को चन्द्र शेखर आजाद ने भगत सिंह  और राजगुरु के साथ लाहौर में  पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया। जैसे ही जे पी सान्डर्स अपने अंग रक्षक के साथ वहां से बाहर निकले राजगुरू ने उस पर गोली चलादी वह गोली उसके माथेपर लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर गया इसके बाद भगत सिह ने उस पर चार पांच गोलिया चलाकर उसे मौत के मुँह में सुला दिया।

      जब उनके  पीछे साणडर्स का आंग रक्षक भागा तब आजाद ने उसको भी गोली मारकर शान्त कर दिया और भाग गये। इसके बाद लाहौर की दीवारौ पर पर्चे चिपकाये गये जिन पर लिखा था कि हमने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया।

   इसके बाद चन्द्र शेखर ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में कसम खाई कि वह कभी भी उनकी पकड़ में नहीं आयेगे इसीलिए वह अपनी पिस्तौल मे एक गोली अपने लिए बचाकर रखते थे।

    27 फरवरी1931  को जब वह इस पार्क में घिर गये तब उनके पास उनकी पिस्तौल में केवल  एक गोली बची थी उसगोली से उन्हौने अपनी मातँभूमि की रक्षा केलिए अपने प्राणौ की आहुति देदी थी।

   एक बार की घटना है आजाद अपने साथियौ के साथ जो सरकारी खजाना लूटते थे वह खजाने वाला बक्सा उनके पास रहता था। एक दिन उनके गाँव से एक आदमी आया और बोला शेखर तुम्हारे पास जो पैसा है उसमें कुछ पैसा अपने भूखे माँ बाप के पास भी भेजदो । वह दोनौ भूखे रहते है।

       तब आजाद ने उस आदमी से कहा था कि यह पैसा मेरा नहीं है यह देश की आजादी की लडा़ई के लिए है इसमें मैं एक पाई नहीं देसकता हूँ। वह अकेले मेरे माँ बाप नहीं है वह तुम सबके माँ बाप भी है। परन्तु जिस दिन तुम सबको ऐसा लगे कि तुम उनको रोटी नहीं देसकते हो उस दिन मुझे बता देना मै गाँव आकर  दो गोली उन दोनौ के सीने उतारकर इस ऋण को भी 

      ऐसे देश भक्त के चरणौ में शत शत नमन।

महानायकौ / महापुरुषौ के चरणौ में नमन

नरेश शर्मा " पचौरी "
      

   17
6 Comments

Milind salve

07-Oct-2022 05:13 PM

बहुत खूब

Reply

Khan

06-Oct-2022 10:20 PM

Bahut khoob 💐👍🌹

Reply